प्रदेश में रोजगार भर्तियां और आरक्षण में अनियमितताओं की वजह से प्रदेश के युवाओं में सरकार के प्रति निराशा एवं आक्रोश।
राज्य में एससी, एसटी एवं ओबीसी के आरक्षण में बड़ी भारी अनियमितताऐं हो रही है इन आरक्षित वर्गों को राज्य सरकार की नीति के अनुसार निर्धारित आरक्षण नही दिया जा रहा है। राज्य की ब्यूरोक्रेशी, अधीनस्थ कर्मचारी बोर्ड, राजस्थान लोक सेवा आयोग में आरक्षण विरोधी अधिकारी, कार्मिक एवं अध्यक्ष इस तरह की विकृत प्रक्रिया अपनाते है कि एससी, एसटी एवं ओबीसी को राज्य की नीति के अनुसार पूरा आरक्षण नही मिले। इसके कुछ नमूने निम्न बिन्दूवार हैः-
1. ओबीसी का आरक्षण 21 प्रतिशत है लेकिन किसी भी भर्ती में कभी भी 21 प्रतिशत रिक्तियां ओबीसी को नही दी जाती। किसी न किसी बहाने ओबीसी की रिक्तियां कम कर दी जाती है जिसकी वजह से ओबीसी का आरक्षण 4-5 प्रतिशत ही रह जाता है।
राज्य सरकार का आरक्षण के रोस्टर सम्बन्ध में 1997 का एक सर्कुलर है जिसके अनुसार प्रत्येक संवर्ग (केडर) के कुल पदों के लिए रोस्टर तैयार किया जाने के निर्देश है। संवर्ग का रोस्टर पूर्ण होने के पश्चात रिपलेसमेंट रूल लागू होता है। यह उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के किसी भी विभाग में रोस्टर पूर्ण नही है और यदि कहीं पर रोस्टर पूर्ण दिखा भी रखा है तो वह नियमानुसार नही बनाया हुआ है बल्कि कहीं मेरीट के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों को आरक्षित वर्ग में दिखा रखा है तो कहीं स्थानान्तरण से आये कार्मिको को आरक्षित वर्ग में दिखा रखा है लेकिन जिस जिले से स्थानान्तरित होकर आये वहा के रोस्टर में कम नही किया।
उक्त समस्या के निदान के लिए 1997 के परिपेत्र को या तो वापिस लिया जाये या उसमें संशोधन कर एससी, एसटी एवं ओबीसी को उनके आरक्षण प्रतिशत के अनुसार रिक्तियां दी जाये। इस समस्या के निदान के लिए यह सुझाव भी है कि एससी, एसटी के लिए बैकलॉग लागू है लेकिन ओबीसी के लिए बैकलॉग लागू नही है इसलिए उक्त सर्कुलरर्स ओबीसी पर लागू नही किया जाये और ओबीसी को 21 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाये।
2. राजस्थान स्टेट एवं सबोर्डिनेट सर्विसेज (ब्वउइपदमक ब्वउचमजपजपअम म्गंउपदंजपवद थ्वत क्पतमबज त्मबतनपजउमदज) के रूल 15 में प्रावधान है कि प्राम्भिक परीक्षा में प्रत्येक वर्ग के 15 गुणा अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए सफल घोषित किया जायेगा। इस नियम के तहत एससी के 16 प्रतिशत का 15 गुणा, एसटी के 12 प्रतिशत का 15 गुणा, ओबीसी के 21 प्रतिशत का 15 गुणा, एसबीसी के 5 प्रतिशत का 15 गुणा, ईडब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत का 15 गुणा और अनारक्षित के 36 प्रतिशत का 15 गुणा सफल घोषित किया जाता है। उल्लेखनीय है कि सामान्य श्रेणी अर्थात अनारक्षित श्रेणी में केवल अनारक्षित अभ्यर्थियों को सम्मिलित किया जाता है परिणाम स्वरूप अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी अनुपातिक रूप से बहुत अधिक संख्या में सफल घोषित कर दिये जाते है। जिससे अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की कटऑफ आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से काफी नीचे रह जाती है। हमने आरक्षण अधिकार मंच एवं राजस्थान जाट महासभा के मंच के तहत इस स्थिति का विरोध किया और समानता लाने के लिए लम्बे समय तक संघर्ष किया तो सरकार ने गत वर्ष नियम 15 में संशोधन करके यह प्रावधान कर दिया कि जिस श्रेणी के निम्नŸाम कटऑफ होगे उस कटऑफ तक सभी वर्गों के अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जायेगा।
इस संशोधन से आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को आंशिक न्याय मिला। लेकिन अभी भी असमानता एवं अन्याय की स्थिति है जो इस प्रकार हैः-
(1) कोई भी ओबीसी का अभ्यर्थी 36 प्रतिशत अनारक्षित और 21 प्रतिशत आरक्षित पदों के लिए कम्पीट करता है जबकि रूल 15 के तहत ओबीसी के 21 प्रतिशत का 15 गुना ही अभ्यर्थियों को ही सफल घोषित किया जाता है क्योंकि राज्य सरकार ने प्रारम्भिक परीक्षा में आरक्षण लागू नही कर रखा इसलिए ओबीसी को जनरल से अलग श्रेणी में रखना नियम विरूद्ध एवं अनुचित है इसलिए हमारा सुझाव है कि प्रारम्भिक परीक्षा में एससी, एसटी के आरक्षण के प्रतिशत का 15 गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित कर दिया जाये और ओबीसी एवं अनारक्षित को सम्मिलित रखते हुए (क्योंकि ओबीसी के अभ्यर्थी भी सामान्य रिक्तियों के लिए कम्पीट करते है) 57 प्रतिशत का 15 गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जाना चाहिए।
3. आरपीएससी द्वारा सिविल सेवा परीक्षा या अन्य भर्तियों में भी साक्षात्कार के लिए लिखित परीक्षा में तीन गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जाता है जिसकी वजह से आरक्षित वर्गों को आरक्षित प्रतिशत के तीन गुना तक ही सीमित कर दिया जाता है जबकि अनारक्षित जातियों को सामान्य वर्ग मानकर उन्हें कुल पदों के 36 प्रतिशत के तीन गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित कर दिया जाता है इस प्रकार आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को सफल घोषित करने में अनुपातिक रूप से काफी असमानता हो जाती है।
निदान
पैरा 2 (1) में उल्लेखित स्थिति एवं सुझाव के अनुकूल ही आरपीएससी द्वारा मुख्य परीक्षा में साक्षात्कार के लिए सफल घोषित किये जाने के मामले में भी अनारक्षित (सामान्य) एवं ओबीसी के अभ्यर्थियों को 36़21त्र57 प्रतिशत का 3 गुना सफल घोषित किया जाना चाहिए।
4. राजस्थान सिविल सेवा परीक्षा में मेरीट से चयनित विद्यार्थियों को सामान्य वर्ग में नियुक्ति नही देना एवं प्रतिक्षा सूचियों को रिसफल नही करनाः- राजस्थान सिविल सेवा परीक्षा में 50 से अधिक सेवाओं के लिए चयन किया जाता है। इस चयन के अन्तर्गत राजस्थान प्रशासनिक सेवा में आरक्षित वर्गों के मेरीट के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों को तो सामान्य संवर्ग में मानकर नियुक्ति दे दी जाती है लेकिन तत्पश्चात की सेवाओं में जिन आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को मेरीट के आधार पर सामान्य संवर्ग में नियुक्ति दी जानी चाहिये वे आरक्षण के आधार पर उपर की सेवाओं में नियुक्ति पा जाते है इसलिए आरएएस सेवा को छोड़कर बाकि सभी सेवाओं में मेरीट में आये अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग अर्थात सामान्य वर्ग में नियुक्ति नही मिलती। जिसकी वजह से आरक्षित वर्गों को उनके आरक्षण तक सीमित कर दिया जाता है और अनारक्षित पदों से उन्हें वंचित कर दिया जाता है।
इसी प्रकार प्रतिक्षा सूचियों में आरक्षित वर्ग के मेरिट में आये अभ्यर्थी भी प्रथम सूची में आरक्षित वर्ग में नियुक्ति पा जाते है जिसकी वजह से आरक्षित सूची में मेरीट आधार का कोई अभ्यर्थी नही रह पाता। इसके लिए आरक्षित वर्ग के जो अभ्यर्थी प्रथम सूची में आरक्षित वर्ग में नियुक्ति पा गये उनके स्थान पर नीचे के मेरिट के अभ्यर्थियों को मेरिट में मानकर मेरिट आधार पर नियुक्ति दी जानी चाहिये अर्थात प्रतिक्षा सूचियों को रिसफल किया जाना चाहिए।
5. टीएसपी जिलों में आरक्षित वर्गों को कोई आरक्षण नही है जबकि अनारक्षित वर्गों को 50 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है टीएसपी क्षेत्र की नियुक्तियों में काफी अनियमितताऐं हो रही है
6. विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती के मामले में विश्वविद्यालयों को युनिट नही माना जाता बल्कि अलग-अलग विषयों और विषयों के अलग-अलग पदों को युनिट मानकर आरक्षित वर्ग को आरक्षण से वंचित किया जा रहा है। सरकार विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक के पदों पर संवर्गवार नीतियों का परीक्षण करे तो यह पाया जायेगा कि एससी, एसटी एवं ओबीसी के प्राध्यापक पांच प्रतिशत से भी कम मिलेगे।
(1) इस समस्या के निदान के लिए सुझाव है कि राज्य सरकार अधिनियम बनाकर एक हाई पावर्ड प्राधिकरण के माध्यम से सभी विश्वविद्यालयों में कुल संवर्गवार (विषयवार नही) रिक्तियां पर नियुक्तियां की जानी चाहिए।
7. न्याय शास्त्र का सामान्य सिद्धान्त है कि भर्तियों में पारदर्शिता होनी चाहिये। संविधान में प्रदत्त नागरिको के मूल अधिकारों प्रमुख्यतः आर्टिकल 14,15,16 का अभिप्राय भी यही है लेकिन भर्ती प्राधिकारी, आरपीएससी, कर्मचारी चयन बोर्ड इत्यादि भर्तियों में बेईमानी, भाई-भतीजावाद एवं अनियमितता के छुपाने के लिये भर्तियों में पारदर्शिता नही रखते। स्थिति यह है कि आरपीएससी के परिणाम में अभ्यर्थी केवल अपने ही प्राप्तांक देख सकता है जबकि किसी भी अभ्यर्थी को समस्त परिणाम, समस्त अभ्यर्थियों के अंक, वरियता इत्यादि देखने की छुट होनी चाहिये।
(1) राज्य की समस्त प्रकार की भर्तियों की परीक्षाओं के अन्तिम परिणाम में सफल अभ्यर्थियों के नाम, प्राप्तांक एवं मेरीट क्रमांक सार्वजनिक रूप से प्रर्दशित की जानी चाहिए।
8. नेशनल विधि विश्वविद्यालय जोधपुर की स्थापना राजस्थान विधानसभा के एक्ट द्वारा की गई है। मूल अधिनियम में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रावधान था लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन और तत्समय के विधि मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने अधिनियम में संशोधन कर अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रावधान हटा दिया और एससी, एसटी के आरक्षण का प्रावधान भी विश्वविद्यालय की मर्जी पर रख दिया। आरक्षण के सम्बन्ध में राज्य सरकार की स्पष्ट नीति है कि राज्य की सभी विश्वविद्यालय, कॉलेजों में एससी, एसटी एवं ओबीसी का आरक्षण रहेगा और उस स्थिति में नेशनल विधि विश्वविद्यालय इसकी पालना क्यों नही कर रहा है। नेशनल विधि विश्वविद्यालय जोधपुर छात्रों के प्रवेश एवं शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण तब ही लागू करेगा जब राज्य सरकार विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन कर आरक्षण के मेन्डेट्री प्रावधान करें।
9. दण्डवत आरक्षण में गलत समायोजनः- राजस्थान सरकार द्वारा महिला, भूतपूर्व सैनिक, विकलांग, खिलाडी एवं मंत्रालयिक कर्मचारियों को दण्डत (होरिजेण्टल) आरक्षण दिया गया है। विभागों के अधिकारी इनके पद सामान्य वर्ग हेतु वर्गीकरण में दिखाते है। राज्य सरकार का नियम है कि पांच पदों तक सभी पद अनारक्षित वर्ग के होते है। सबका चयन मेरिट आधार पर किया जाता है, लेकिन सबसे ऊपर मेरिट में आने वालों को जाति देखकर आरक्षित वर्ग में तथा मेरिट के अन्त में चयन होने वाले अभ्यर्थियो को सामान्य वर्ग में समायोजित कर उनके पद कम किये जाते है। जबकि नियमों में साफ लिखा है कि चयन में जो जिस वर्ग का होगा उसे उसी वर्ग में समायोजित किया जावेगा। यहां सामान्य वर्ग का गलत अर्थ अनारक्षित वर्ग से लगाए जाता है, जबकि सामान्य वर्ग का अर्थ मेरिट आधार पर चयन से है। अतः जब सभी अभ्यर्थियों का चयन मेंरिट आधार पर किया जाता है, तो उन्हे समायोजित भी सामान्य वर्ग (मेरिट) में ही करना चाहिए। यदि अभी चल रही भर्ति परीक्षाओं में मेरिट आधार पर चयनित भूतपूर्व सैनिक, विकलांग, खिलाडी एवं मंत्रालयिक कर्मचारी अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग में तथा उससे कम अंक अभ्यर्थियों को ओबीसी , एससी एवं एसटी में समायोजित किया जावें तो प्रत्येक भर्ती में 500 से 1000 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी और चयन हो सकते है।
10. ओबीसी के आरक्षण को 21 प्रतिशत लागू किये जाने के सम्बन्ध में उपर्युक्त पेराओं में बताई गई प्रक्रिया के अतिरिक्त एससी, एसटी की तरह बैकलॉग लागू किया जाये।
11. सरकार एवं भर्ती प्राधिकरणों, आयोग, बोर्ड द्वारा परीक्षा में समूचित प्रक्रिया नही अपनाऐ जाने, सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार लागू नही किये जाने एवं परीक्षा के परिणाम में पारदर्शिता नही बनाए जाने के कारण भर्तियों में अनावश्यक लीटिगेशन बढ़ता है जिससे अभ्यर्थियों को तो भारी परेशानियों से तो गुजरना पड़ता ही है बल्कि राज्य सरकार की छवि भी धुमिल होती है जिसका प्रभाव चुनावों में स्पष्ट परिलक्षित होता है।
12. उल्लेखनीय है कि यूपीएससी एवं एसएससी द्वारा की जा रही भर्तियों में कोई अनिमितता नही होती जिसकी वजह से भर्तियां समयानुसार होती है। अतः राज्य सरकार की सभी भर्तियां भी यूपीएससी एवं एसएससी की व्यवस्था के अनुसार आयोजित की जावे।
13. उल्लेखनीय है कि राजस्थान जाट महासभा, आरक्षण अधिकार मंच एवं आरक्षण संवर्गों के संगठन एवं अभ्यर्थी उपर उल्लेखित अनियमितताओं को दूर करने एवं प्रतियोगी परीक्षाओं एवं आरक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए लगातार संघर्ष कर रहे है लेकिन सरकार पर कोई प्रभाव दिखाई नही देता बल्कि नकल माफिया, आरक्षण विरोधी ताकतों ने प्रतियोगिता परीक्षाओं, आरपीएससी, अधीनस्थ कर्मचारी बोर्ड और आरक्षण व्यवस्था को हाईजेक कर रखा है जिसका प्रभाव आगामी चुनावों में स्पष्ट नजर आयेगा।
अतः हमारा निवेदन है कि राज्य सरकार दो माह में व्यवस्था में सुधार करे। जो अधिकारी, प्राधिकारी आरक्षण नीति को सही ठंग से लागू नही करता, नियम की जानबुझकर अवहेलना करता है एवं अनियमितता करता है उसके विरूद्ध कठोर दण्डात्मक कार्यवाही की जावे तभी व्यवस्था में सुधार हो सकता है। बेरोजगार युवाओं का आक्रोश चरमसीमा पर है उपर्युक्त समस्याओं का समय पर निदान नही किया गया तो सभी आरक्षित वर्ग संगठित रूप से राज्य सरकार के विरूद्ध एक बड़ा आंदोलन एवं संघर्ष करने को मजबूर होना पड़ेगा। हमारे सेकड़ो कार्यकर्ता आमरण अनशन पर भी बैठने को आमदा है।
सादर।
भवदीय
(राजाराम मील)